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कानू भैया एक महान व्यक्ति थे। परंतु मुझे ये बात समझ में नही आती की हमें किसी भी महान व्यक्ति की महानता का पता उसके मरने के बाद ही क्यों चलता है। कानू भैया अगर महान थे तो वो 23 मार्च 2010 से पहले भी महान जरुर रहे होगें। एक व्यक्ति जिसने नक्सलवाद जैसा विद्रोह करवा दिया वो आम कदापि नहीं हो सकता। अगर कानू भैया आजादी से पहले आए होते तो हमारा भारत शायद 1947 से पहले ही आजाद हो चुका होता। लेकिन ये मनुष्य की विड़ंबना है कि उसे समय से पहले और भाग्य से ज्यादा कुछ नही मिलता।
कानू भैया महान थे इसमें कोई दो राय नही है परंतु वर्तमान में नक्सलवाद को देख कर अपने इस विचार पर एक बार संशय होता है। लेकिन इस संशय का ये कतई अर्थ नही है कि कानू भैया महान नही थे। आज कल के बच्चे जब बड़े हो जाते है तो वो अपने पिताजी के कहे में कहाँ रहते है। बस ऐसा ही कुछ नक्सलवाद के पिता कहे जाने वाले कानू भैया के साथ भी हुआ। ऐसा पहली बार नही हुआ है, अकसर ही महान लोग अपने बच्चों को अपनी महानता नही सिखा पाते और हमारे कानू भैया भी तो एक महान व्यक्ति ही थे।
मैंने शुरु में ही कहा था मैं लेट हो चुका हुँ तो आप ये सोच रहे होगे की मुझे ये याद कैसे आया की में लेट हो चुका हुँ। बस 7 अप्रैल के दंतेवाड़ा के नक्सली हमले के बाद। मुझे नहीं पता था कि मेरी इस छोटी सी भूल का ये परिणाम होगा। अगर आपने भी अभी तक कानू भैया को श्रद्धांजली नही दी है तो जल्दी करें कही आप भी लेट न हो जाएं। क्योंकि मुझे अपने लेट होने पर बहुत अफसोस है।
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